बलरामपुर

वर्षों से प्रभारी एसडीओ के रूप मेें तैनात को हटाने में प्रशासन नाकाम,

मामला बलरामपुर जिला पंचायत के बलरामपुर जनपद आर.ई.एस. विभाग का है

सुनील पासवान ( मनी )

पंचायत मंत्रालय द्वारा पदस्थ अधिकारी तीन महीने से भटक रहे, आदेष रद्दी के टोकरी में

       स्थानीय आर.ई.एस. में पदस्थ एक प्रभारी अधिकारी के कृत्यों से न केवल उनके अधीनस्थ कार्य करने वाले सचिव व अन्य कर्मी परेषान हैं बल्कि प्रशासन के लिए भी यह अधिकारी गले का हड्डी बना हुआ है। इनके अवैध वसूली जैसे कारनामों से पूरा विभाग गंधा रहा है। सचिवों में इतना आक्रोष है कि वे कई बार उक्त अधिकारी को हटाने संबंधी ज्ञापन सौंपने के साथ आज जिला पंचायत सीईओ से प्रत्यक्ष रूप से उसे हटाने की मांग की, किन्तु अभी तक कोई कार्यवाही होता हुआ नहीं आ रहा है। यहाॅ यह भी उल्लेखनीय है कि यह अधिकारी प्रभारी एसडीओ के रूप में 03 वर्षों से पदस्थ हैै, जो अपने आप में आष्चर्य का विषय है। 

        उल्लेखनीय है कि विगत 3 वर्ष पूर्व यहाॅ ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग में एसडीओ के पद पर खाली हुआ तो राजपुर में पदस्थ उपयंत्री राजेन्द्र दुबे को यहाॅ का एसडीओ का प्रभार सौंप दिया गया। तब से वे यहाॅ जमे हुए हैैं और खुलेआम अपनी मनमानी कर रहे हैं, जिससे जनता तो त्रस्त हैं ही उनके अधीनस्थ सचिव व अन्य अधिकारी जो जनपद पंचायत के निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं वे भी इनके वसूली खाऊ नीति से त्रस्त हैं। इनके द्वारा खुलेआम किए जा रहे भ्रष्टाचार संबंधी कार्यों से पूरे जिले के अधिकारी अच्छी तरह से अवगत हैं किंतु अज्ञात कारणों से वे भी इसे हटा पाने में असमर्थ हैं। सचिवों का मानना है कि उक्त अधिकारी पर पूरे प्रषासन के साथ क्षेत्रीय पंचाय स्तर के कुछ जनप्रतिनिधियों का भी सर पर हाथ हैं। लोगों का तो यहाॅ तक कहना है कि उक्त अधिकारी द्वारा वसूली की जा रही अनैतिक पैसे उच्च स्तर तक पहुंच रहे हैं, जिससे इनके खिलाफ कार्यवाही करने वाले अथवा बोलने वालों का मुॅह बंद हैै। ऐसा नहीं कि उक्त प्रभारी अधिकारी के स्थान पर विधिवत नियुक्ति अभी तक नहीं हुई है। तीन माह पूर्व शासन के आदेषानुसार राजेष कुजूर नामक अनुविभागीय अधिकारी की यहाॅ विधिवत पदस्थापना की गई है, किंतु आज तक वह अधिकारी अपने प्रभार को पाने हेतु भटक रहा है और उसकी कोई कहीं भी सुनवाई नहीं हुई। उल्टा हुआ यह कि उसे भी दूसरे विभाग में प्रभारी अधिकारी के रूप में तैनात कर दिया गया है। यह खुला खेल अब जिले के राजनीतिक, प्रषासनिक और विभाग के अंदर खुद भी चर्चा का विषय बना हुआ है। यदि शीघ्र ही उक्त अधिकारी को उनके प्रभार से मुक्त नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में इसका विपरीत प्रभाव प्रषासन के साथ-साथ शासन पर भी पड़ सकता है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। आक्रोषित सचिवों ने तो यहाॅ तक कहा है कि यदि कार्यवाही नहीं होती है तो वे उच्च स्तर तक उक्त अधिकारी के विरूद्ध अपनी लड़ाई ले जाने विवष होंगे। 

मंत्रालय का आदेश भी टोकरी में

उक्त अधिकारी के स्थान पर 3 माह पूर्व पंचायत मंत्रालय ने एक आदेष जारी करते हुए राजेष कुजूर नामक व्यक्ति को अनुविभागीय अधिकारी के रूप में यहाॅ पदस्थ किया गया था, किंतु मंत्रालय का यह आदेष जिला पंचायत के रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। अनुमान लगाया जा सकता है कि उक्त भ्रष्ट अधिकारी की पहुंच किस सीमा तक होेगी

जनपद सीईओ का खुला संरक्षण-सचिव संघ 

लगभग एक वर्ष पूर्व सचिव संघ ने संघ के अध्यक्ष के नेतृत्व में एक ज्ञापन सौंपकर जनपद सीईओ को उक्त प्रभारी अधिकारी द्वारा अवैध वसूली किये जाने की लिखित शिकायत दी थी। सीईओ ने बिना पावती दिए वह आवेदन यह कहते हुए ले लिया कि वे उसे समझा देंगे। कुछ दिनों तक तो मामला ठीकठाक रहा लेकिन पुनः पुराने ढर्रे पर लौट आया। आज सचिवों ने पत्रकारों को बुलाकर अपनी व्यथा बताई और यह भी बताया कि उक्त प्रभारी अधिकारी राजेन्द्र दुबे द्वारा सत्यापन, तकनीकी स्वीकृति आदि में खुलेआम पैसों की मांग की जाती है। अन्यथा फाईल सामने ही फेंक दिया जाता है। 

जिला पंचायत सीईओ का गोलमोल जवाब

इस संबंध में जिला पंचायत सीईओ रेना जमील से जब पत्रकारों ने जानकारी चाही तो मैडम ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कुछ भी जानकारी नहीं है। न तो किसी के पदस्थापना की और न ही सचिवों द्वारा दिए गए ज्ञापन की। जबकि राजेष कुजूर के पदस्थापना संबंधी आदेष में पंचायत मंत्रालय ने काॅपी में स्पष्ट रूप से जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को प्रतिलिपि भेजी गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उक्त अधिकारी को उसके पद पर बनाए रखने हेतु किस स्तर तक कुटनीति का खेल खेला जा रहा है।

जनपद सीईओ का दो टूक-‘‘नो कमेेंट्स’

इस संबंध में जनपद पंचायत सीईओ के.के. जायसवाल से जब पत्रकारोें ने जानकारी मांगने का प्रयास किया गया तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा ‘‘नो कमेंट्स’’ इसके साथ ही दबे स्वर में उन्होंने कहा कि यदि मैं कुछ कह दिया तो उल्टे मुझे ही परेषानी का सामना करना पड़ सकता है। मेरा कुछ कहना मुझ पर ही भारी पड़ेगा।

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